बद्रीनाथ धाम का इतिहास – History of badrinath dham in hindi
दोस्तों इस आर्टिकल में हम आपको उत्तराखंड राज्य के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है तो आपसे निवेदन है की आप इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़े| बद्रीनाथ धाम का यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण दो पर्वतो के बीच स्थित है। भगवान् विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ धाम का यह मंदिर पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तराखंड में स्थित पंच बदरी, पंच केदार और पंच प्रयाग, हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं | मंदिर ऋषिकेश से 214 km दूर उत्तर दिशा में स्थित है| प्राचीन शैली में बने इस मंदिर की ऊँचाई 15 मीटर की है| पौराणिक कथाओं में ऐसा वर्णन किया हुआ है की एक काले रंग के शालिग्राम पत्थर के ऊपर बद्रीनारायण की छवि को भगवान शंकर ने अलकनंदा नदी में खोजी थी| जो की मूल रूप से गर्म पानी “तप्त कुंड” के पास एक गुफा में बना हुआ था |

बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण – Construction of Badrinath Temple
8 वी सदी में बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था इस मंदिर में मूर्ति की स्थापना सोलहवीं सदी में गढ़वाल के राजा ने करवाई थी| भगवान् विष्णु नारायण का यह मंदिर पूरा प्रकर्ति की गोद में स्थित है|
गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप तीन भागों में विभाजित इस मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊँची काले पत्थर की प्रतिमा हैऔर साथ ही साथ 15 मुर्तिया स्थापित है|
“धरती का वैकुण्ठ” कहे जाने वाले इस मंदिर में तुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है |
बद्रीनाथ धाम की पौराणिक कथाये – Mythological stories of Badrinath Dham
पुरानिक कथाओं के अनुसार ऐसा बताया जाता है की भगवान विष्णु अपने ध्यान में मग्न होने के लिए एक स्थान खोज रहे थे तो उन्हें यह अलकनंदा नदी के पास वाला स्थान भा गया | जो की भगवान शिव की केदार भूमि के रूप में प्रचलित था | ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के पास भगवान विष्णु ने एक बालक का रूप धारण किया और रोने लगे | जिसे वर्तमान में विष्णु चंरण पादुका के नाम से जाना जाता है |

बालक की रोने की आवाज़ सुनकर भगवान शिव और माता पार्वती उस बालक के पास आये | बालक को रोता देख कर उसे पूछा तुम्हे क्या चाहिए | तो बालक ने बोला की मुझे ध्यानयोग करने के लिए शिवभूमि यानि की केदार भूमि का स्थान चाहिए | इस तरह से रूप धारण कर भगवान विष्णु ने शिवभूमि को प्राप्त कर लिया | यह पवित्र स्थान बद्रीनाथ धाम से जाना जाता है |
बद्रीनाथ धाम का नाम बद्रीनाथ कैसे पडा – How Badrinath Dham got its name Badrinath
इस कहानी के पीछे भी एक रोचक कथा काफी प्रचलित है कहते है कि एक बार माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु से रूठकर अपने मायके चले गयी | और भगवन विष्णु के मनाने पर भी वापस नहीं आयी | तब लक्ष्मी को मनाने हेतु भगवन विष्णु तपस्या करने के लिए केदार भूमि की तरफ निकल पड़े और कठोर तपस्या करने लगे | शीतकालीन में जब वहा पर बर्फ गिरने लगी तो माँ लक्ष्मी को विष्णु भगवान पर दया आयी और एक बेर के पेड़ (बद्री का पेड़) का रूप धारण कर भगवान विष्णु की तपस्या में योग प्रदान किया | जब हजारो साल बाद भगवान विष्णु की तपस्या पूरी हुई तो विष्णु ने कहा की लक्ष्मी तुमने मेरी तपस्या में सहायता की इसलिए इस बद्री वशाल में मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी | वहा पर माँ लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को “बद्रीनाथ”नाम दिया |
बद्रीनाथ धाम में तप्त कुंड का क्या महत्व है – What is the significance of the hot tub in Badrinath Dham
बद्रीनाथ के इस तप्त कुंड की महिमा कुछ अलग ही है जो गर्म पानी के स्रोत होते है वो गंधक से निकलते हैं। इस गर्म पानी में स्नान करने से सभी तरह के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है और थकावट भी दूर होती है। बद्रीनाथ मंदिर के ठीक पीछे की पहाड़ी से निकलता ये गर्म पानी का स्रोत जिसे दो भागो में बाटा गया है एक पुरुष तप्त कुंड जहा पर पुरुष स्नान करते है और दूसरा महिला तप्त कुंड है जहा पर महिलाये स्नान करती है अगर आप बहार से इस पानी को हाथ लगाते है तो बहुत गर्म लगता है और जैसे ही आप इस कुंड में स्नान करेंगे तो कुछ देर बाद आपको पानी सही लगेगा |

बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने एवं बंद होने समय – Badrinath Temple opening and closing times
बद्रीनाथ धाम के कपाट प्रत्येक वर्ष अप्रैल-मई माह में खोले जाते है जिसकी तारीख बसंत पंचमी के सुबह अवसर पर तय की जाती है और अक्टूबर-नवंबर माह में एक भव्य समापन समरोह के बाद मंदिर के कपाट को 6 माह के लिए बंद कर दिया जाता है जिसकी तारीख वजय दशमी पर तय की जाती है इस बिच बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु यहां पर आते है।
सर्दियों में बर्फ गिरने के कारन मंदिर को 6 माह के लिए पूर्ण रूप से बंद कर दिया जाता है और भगवान बद्री की विशाल पूजा अर्चना जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में की जाती है।
कियोंकि सर्दियों में बर्फ से ढके पहाड़ उत्तराखंड की चार धाम यात्राओं को बंद होने का संकेत देते है।
बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन करने का सबसे अच्छा समय – Best time to visit Badrinath Temple
बद्रीनाथ धाम की यात्रा करने के लिए अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर माह का सबसे अच्छा समय होता है | कियोंकि मानसून के समय यहां पर अधिकतर बारिश और भू-स्खलन का खतरा रहता है इसलिए इस दौरान यात्रा करना काफी कठिन हो सकता है |
बद्रीनाथ धाम कैसे पहुंचे – How to reach Badrinath Dham
हवाई मार्ग – जॉली ग्रांट हवाई अड्डा देहरादून
ट्रेन मार्ग – हरिद्वार और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है वहा से आप यमनोत्री धाम के लिए सीधे शेयरिंग टैक्सी, परसनल टैक्सी, या बस ले सकते है
सड़क मार्ग – बद्रीनाथ धाम जाने के लिए आप हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून से आराम से जा सकते हैं जहा पर टैक्सी और बस की सारी सुविधाएं उपलब्ध है |
बद्रीनाथ धाम हरिद्वार से 324 km, ऋषिकेश से 297 km, और कोटद्वार से 327 km दूर है। बद्रीनाथ धाम हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कोटद्वार, जोशीमठ क्षेत्र के सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहाँ पर सभी तरह की टैक्सी और बस सेवाएं उपलब्ध रहती है | बस या टैक्सी आपको सीधे मंदिर तक छोड़ देगी वहा पर आपको पैदल नहीं चलना पड़ेगा |
दोस्तों हम उम्मीद करते है कि आपको “बदरीनाथ धाम मंदिर” के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा।
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