त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की की पूरी जानकारी इतिहास, पौराणिक, महत्व, रहस्य (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple in Hindi) 

श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत में महाराष्ट्र प्रांत के नासिक जिले में पंचवटी से लगभग 18 km दूर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है. यहां पर ब्रह्मगिरि के पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम होता है. हिन्दुओं का यह प्राचीन एवं प्रमुख मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. जिसमे शिव की पूजा आराधना श्री त्र्यम्बकेश्वर के रूप में की जाती है।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple History in Hindi)

 “त्र्यम्बकेश्वर” का अर्थ होता है “तीन वेद” यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेस अर्थात भगवान शिव को इन तीनों देवों का प्रतीक कहा गया  है | इस मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह में एक छोटे से गड्ढे अंदर तीन छोटे-छोटे लिंग विराजमान है, जिन्हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश कहा जाता है, भगवान शिव इन तीनो देवो के प्रतिक माने जाते है।

ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर गौतम ऋषि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था। और गौतम ऋषि की प्रार्थनानुसार भगवान शिव इसी स्थान पर तीन वेद शिवलिंग के रूप में विराजमान हुए थे। जिन्हे श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते है।

हिन्दू धर्म की शिवपुराण के मुताबिक ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर चढ़ने के लिए 700 सीढिया बनी हुई है जहा पर दो कुंड देते है। जिसे ‘रामकुण्ड’ और ‘लष्मणकुण्ड’ कहते है और पर्वत के शिखर से गोमुख से निकलती गोदावरी दिखाई देती है।

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो में स्थापित श्रीविश्वनाथ का यह आठवा ज्योतिर्लिंग माना गया है। इन मंदिरो को ज्योतिर्लिंग इसलिए कहा जाता है कियुँकि भगवान शिव इन स्थानो पर स्वयं प्रकट हुए थे। इसीलिए यह स्थान ज्योतिर्लिंग कहलाते है।

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त्र्यम्बकेश्वर मंदिर की पौराणिक कथा (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple Story in Hindi)

हिन्दू धर्म की शिवपुराण में त्र्यम्बकेश्वर मंदिर उल्लेख बड़े विस्तार से किया हुआ है ऐसा कहते है की एक बार महर्षि गौतम ऋषि की पत्नी और तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियो के बिच किसी बात को लेकर कुछ कहा सुनी हो गयी, ब्राह्मणों की पत्नियो ने इस बात को लेकर अपने-अपने पतियों कहा की किसी तरह गौतम ऋषि का अपमान करके उन्हें पत्नी सहित आश्रम से निकाल दो,  इस बात को लेकर उन ब्राह्मणों ने भगवान गणेशजी की कठोर तपस्या की,

तब गणेशजी ने उनसे प्रसन्न होकर कहा की मांगो क्या वरदान मांगना है तुम्हे, ब्राह्मणो ने गौतम ऋषि को इस आश्रम से बाहर निकालने का वरदान माँगा, गणेशजी ने कहा की तुम मुझसे ये क्या वरदान मांग रहे हो कुछ और मांगो इसे तुम्हे क्या मिलेगा, लेकिन वे अपनी इसी इच्छा पर अटल रहे, इस बात से गणेशजी बहुत परेशांन हुए और उन्हें विवश होकर वरदान देदिया।

तभी गणेश ने एक गाय का रूप धारण कर गौतम ऋषि के खेत में फसल चरने लगे | यह देख गौतम ऋषि बड़ी नरमी के साथ उस गाय को हाथो से हाँकने गए | उनके हाथ लगते ही गाय वहीं पर मर जाती है | तभी सारे ब्राह्मण पुरे आश्रम में ऋषि को गाय का हत्यारा बताकर बड़ा हाहाकार मचा देते है | और गौतम ऋषि से कहते है की तुम्हे यह आश्रम हमेशा के लिए छोड़कर कही और जाना होगा तुमने एक निर्जीव गाय की हत्या की है |

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गौतम ऋषि बड़े दुखी होते हुए अपनी पत्नी अहिल्या के साथ उस आश्रम से कही दूर जाकर रहने लग जाते है | लेकिन वे ब्राह्मण उन्हें वहाँ भी परेशान करने लगे | और बार-बार ऋषि को गाय का हत्यारा बताकर की तुम्हे अब पूजा-पाठ और यज्ञ करने का कोई हक़ नहीं है | गौतम ऋषि ने ब्रह्मणो के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा की मेरी गलती का कोई उपाए मुझे बताया जिसे में इस पाप से मुक्त हो सकू |

तब जाकर उन ब्रह्मणो ने ऋषि से ऐसा कहा की अगर तुम्हे इस पाप से मुक्ति चाहिए | तो अपने इस पाप को सबको बताते हुए पूरी पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करनी होगी | उसके बाद में एक महीने का व्रत करना होगा | फिर इस ब्रह्मगिरी पर्वत की 101 परिक्रमा होगी | और अंत में यहाँ गंगाजी को लाकर उसमे स्नान कर एक करोड़ शिवलिंगों पर जल चढ़ाकर भगवान शिव की आराधना करने होगी | तब जाकर इस पाप से तुम्हारा उद्धार होगा |

ब्राह्मणों की सारी बातो का पालन करते हुए गौतम ऋषि ने ऐसा ही किया और सारे कार्य पुरे करने बाद गौतम ऋषि अपने पत्नी के साथ बगवान शिव की कठोर तपस्या करने लगे | ऋषि की इस तपस्या को देख भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा | तो गौतम ऋषि ने कहा की ये भगवान में तो बस गाय हत्या के पाप से मुक्त होना चाहता हु | शिव ने ऋषि से कहा की इस हत्या का आरोप उन ब्राह्मणों ने तुम्हारे ऊपर छल कपट करके लगाया था | उन आश्रम के ब्राह्मणों को इसका दण्ड जरूर मिलेगा |

गौतम ऋषि ने कहा हे प्रभु मुझे उन ब्रह्मणो के छल कपट करने से साक्षात आपके दर्शन प्राप्त हुए है|उन ब्राह्मणों को शमा करदो | ऋषि ने भगवान्‌ शिव से प्राथना करते हुए कहा की हे प्रभु आप सदा के लिए इस स्थान पर विराजमान हो जाईये | गौतम ऋषि की  बात मानकर शिव वहाँ पर त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से विराजमान हो गए | गौतम ऋषि द्वारा लाई गई गंगाजी जिसको गोदावरी के नाम से जाना जाता है |

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त्र्यम्बकेश्वर मंदिर का निर्माण एवं सरचना – Trimbakeshwar Temple Architecture in Hindi)

गोदावरी नदी के तट पर काले पत्‍थरों से बना त्र्यंबकेश्‍वर महादेव का यह मंदिर एकदम अद्भुत और चमत्कारी है। इस मंदिर में  पंचक्रोशी पूजा का विशेष महत्व बताया गया है जिसमे भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए कालसर्प, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की विशेष पूजा कराते है | त्र्यंबकेश्‍वर मंदिर का पुनः र्निर्माण पेशवा बालाजी ने करवाया था। जो की 1755 से लेकर 1786 तक यानि लगभग 31 साल में पूरा हुआ था | जिसमे करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे|

मंदिर में पहुंचने के लिए एक छोटे से गाँव के अंदर पैदल चलना पड़ता है | मंदिर के मुख्य गर्भगृह में शिवलिंग का केवल अर्घा दिखाई देता है लिंग नहीं | बहुत गौर से देखने पर आपको अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देंगे | जिन्हे त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना गया है | सुबह की पूजा होने के बाद इस अर्घा पर चाँदी का एक पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है |

त्र्यंबकेश्‍वर मंदिर में कैसे पहुंचे (How to reach Trimbakeshwar Temple in Hindi)

अगर आप त्रयंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग मंदिर जाने के लिए सोच रहे है तो आप रेल, सड़क और वायु इन तीनों मार्गों द्धारा बहुत आसानी से जा सकते हैं।

दोस्तों हम उम्मीद करते है कि आपको Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple in Hindi के बारे में पढ़कर अच्छा लगा होगा।

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