Ardhkuwari Gufa Story in Hindi:- जय माता दी, हिन्दू धर्म में वैसे तो देवी देवताओं की कई मान्यतओं को माना जाता है। लेकिन कुछ मान्यता ऐसी भी होती है जहा पर पुरे वर्ष श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है। उन्ही में से एक है माता वैष्णो देवी की यात्रा जहा पर हर साल लाखो करोडो की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए पहुंचते है। इस यात्रा के बिच में तीन पड़ाव आते है। सबसे पहले पड़ाव में बाणगंगा आती है। जहा पर माता वैष्णो देवी ने अपने धनुष से बाण चलाकर गंगा उत्पन की थी। दूसरे पड़ाव में आता है चरण पादुका मंदिर इस स्थान पर माता ने पीछे मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। और तीसरे पड़ाव में आती है गर्भजून गुफा जिसे अर्द्धकुवारी गुफा के नाम से भी जाना जाता है। भैरवनाथ से बचने के लिए माता ने इस गुफा में शरण ली थी और 9 माह तक तपस्या की थी।

Ardhkuwari Gufa Story in Hindi
Ardhkuwari Gufa Story in Hindi

दोस्तों आज के इस लेख में हम आपको माता वैष्णो देवी की तीर्थ यात्रा के तीसरे पड़ाव यानी गर्भजून गुफा की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है। जिसे अर्धकुंवारी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। आखिर में कब क्यों और कैसे इस गुफा को गर्भजून गुफा कहा गया, क्या मान्यता है इस गुफा की इन सभी के बारे जानने के लिए इस लेक को अंत तक जरूर देखे।

Garbh Joon Gufa Vaishno Devi in Hindi (गर्भजून गुफा वैष्णो देवी)

माता वैष्णो देवी के भवानी द्वार यानी चेक पोस्ट से अर्द्धकुंवारी गुफा की दुरी लगभग 8 km की है। और अर्द्धकुंवारी से माता वैष्णो देवी के भवन की दुरी लगभग 6.5 km की रह जाती है। अर्धकुंवारी शब्द का अर्थ आदि कुंवारी से मिलकर बना है, हिन्दू पुराणों के अनुसार ऐसा कहा जाता है, की जब माँ वैष्णवी ने एक छोटी कन्या का रूप धारण किया और पंडित श्रीधर द्वारा आयोजित भंडारे में भैरवनाथ को देख कर वहा से त्रिकुटा पर्वत की तरफ गायब हो गई।

बाणगंगा और चरण पादुका के होते हुए वैष्णवी सीधा अर्धकुंवारी पहुंचीं, जहा पर उन्होंने एक छोटी सी गुफा यानि कोख के आकार की गुफा में प्रवेश किया। और नौ महीनो तक उसी गुफा में तपस्या की। ऐसा भी कहा जाता है की माँ वैष्णवी ने गुफा के अंदर जिस स्थान में ध्यान लगाया था। वह गुफा के अंदर दाईं ओर स्थित है जो की एक गर्भ के आकार का बना हुआ है।

माता वैष्णवी ने एक कुंवारी कन्या के रूप में पुरे 9 महीनो तक गर्भ के आकार की गुफा में तपस्या की और अनुशासन का पालन किया था, इसलिए इस गुफा को गर्भजून गुफा या फिर अर्ध कुंवारी गुफा के नाम से भी जाना जाता है गर्भ एक योनि शब्द से आया है गर्भजून गुफा की ऐसी मान्यता है की जो भी श्रद्धालु इस गुफा के अंदर से निकल जाता है मानो वह एक माँ के गर्भ से निकलता है और एक छोटे बच्चे की तरह बिलकुल निर्दोष हो जाता है और उसके सारे पाप समाप्त हो जाते है।

अर्धकुंवारी मंदिर की पौराणिक कथा

हिन्दू धर्म के पुराणों में वैसे तो माता वैष्णो देवी की काफी कथाये लिखी हुई है। उन्ही में से एक कथा बहुत प्रचलित है आज हम इसी कथा के बारे में बात करेंगे। कटरा से कुछ ही दूर हंसाली गांव में स्थित श्रीधर नाम का एक पंडित रहता था, जो की माता वैष्णो देवी का परम भक्त था। एक बार की बात है जब नवरात्रो के समय पंडित श्रीधर ने 9 कन्याओं को अपने घर जीमने के लिए बुलाया। उनमे से एक कन्या माता वैष्णवी थी। जीमने के बाद सभी कन्या अपने घर वापस चली गयी। लेकिन वैष्णवी वही पर रुक गयी। और पंडित श्रीधर से बोली की सभी गांव वासियो को अपने घर भंडारे के लिए निमंत्रण दे आयो।

Ardhkuwari Gufa Story in Hindi
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पंडित श्रीधर उस कन्या की बात को मानते हुए सभी गांव वालो को अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आता है, वापस लोटते वक्त श्रीधर ने भैरव नाथ और उसके शिष्यों को भी भंडारे के निमंत्रण दे दिया, कुछ ही दिन बाद भंडारे का समय नजदीक आ गया लेकिन गरीब होने के कारन पंडित श्रीधर भंडारे के सामान नहीं जुटा सका, सभी गांव वाले और भैरवनाथ पंडित श्रीधर के घर पहुंच गए। पंडित श्रीधर माँ वैष्णवी की पूजा अर्चना में नील था और अपनी लाज की प्राथना कर रहा था। तभी माँ वैष्णवी एक कन्या के रूप में वहा आती है, और सभी गांव वालो को भोजन कराती है।

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जब वह भोजन लेकर भैरवनाथ के पास पहुंच थी है, तो भैरवनाथ उससे खीर पूड़ी की जगह मॉस मदिरा खाने को कहता है। कन्या भैरव से कहती है भैरव ये एक भ्रह्माण का घर है यहां पर शुद भोजन ही मिलेगा। भैरवनाथ अपनी जींद पर अटल रहता है और उस कन्या को पकड़ने की कोशिश करता है तभी वैष्णवी उसके कपट को जान लेती है। और वहा से वायु रूप में बदलकर त्रिकुटा पर्वत की और चल उड़ती है। भैरवनाथ भी कन्या का पीछा करते हुए चला जाता है।

तभी वहा पर हनुमान जी माता की रक्षा करने के लिए आते है पहाड़ियों पर चढ़कर हनुमान जी को प्यास लगी है फिर वह माता से जल पिने की आग्रह करते है। माँ वैष्णवी ने हनुमान जी से कहती है तुम आस पास कही जल पीकर आ जायो में तुम्हारी यही पर प्रतीक्षा करुँगी। लेकिन हनुमान जी काफी हट करने लगे तब जाकर माँ वैष्णो ने अपने धनुस से एक बाण चलाकर गंगा जी की पवित्र धारा को निकाला था। तब जाकर हनुमान जी ने जल ग्रहण किया। उसके बाद माँ गंगा ने वैष्णो देवी को दर्शन दिए और कहा की आपने मुझे यहां पर अवतरित करके बहुत आभार किया है अब मुझे स्पर्श करके धन्य भी कीजिये।

उसके बाद माता वैष्णो देवी ने गंगा इस पवित्र धारा में अपने केश धोये थे। जिसे बाणगंगा के नाम से जाना जाता है। थोड़ा आगे चलकर माँ वैष्णवी कुछ देर के लिए रूकती है। और पीछे मुड़कर भैरवनाथ को देखती है। जिस स्थान पर माता ने रुक कर पीछे मुड़कर भैरनाथ को देखा था। उसे चरण पादुका के नाम से जाना जाता है। उसके बाद माता वैष्णवी आगे की और चलती है और भैरवनाथ से बचने के लिए एक छोटी सी गुफा में प्रवेश करती है। जो की एक कोख की आकार की होती है। वही पर माता 9 महीनो तक तपस्या करती है और बाद में गुफा के दूसरी तरफ से जगह बनाकर ऊपर पहाड़ो की तरफ चली जाती है।

जहा आज माता वैष्णो देवी का भवन है उसी स्थान पर माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का धड़ सर से अलग कर दिया था। जो की 2 km ऊपर एक घाटी में जाकर गिरा था जिसे आज भैरव घाटी के नाम से जाना जाता है। और उसी स्थान पर भैरवनाथ का मंदिर है। मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है जब भैरवनाथ ने माता वैष्णो देवी से अपने अपराध की शमा मांगी थी, माता जानती थी की भैरवनाथ अपने श्राप से मुक्त होना चाहता है। इसीलिए उसने ये सब किया है। तब माता ने भैरवनाथ को ये वचन दिया था की जो भी भक्त यात्रा करके यहां पर आएगा वो तेरे पास भी जरूर जायेगा तभी मेरी यात्रा पूरी होगी। आज भी श्रद्धालु इस वचन को पूरा करते है माता वैष्णो देवी की यात्रा करने के बाद भैरवनाथ की यात्रा भी जरूर करते है तभी उनकी पूरी यात्रा मानी जाती है

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दोस्तों हम उम्मीद करते है की आपको Ardhkuwari Gufa Story in Hindi की सम्पूर्ण जानकारी जानकर अच्छा लगा होगा।

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