Jwala Devi Temple Story: ज्वाला देवी मंदिर की एक ओर अनोखी बात यह भी है कि यहां पर प्रतिदिन पांच बार आरती की जाती है। अपने भी देखा होगा की हिन्दू धर्म के मंदिरों में प्रतिदिन सुबह और शाम को ही आरती की जाती है। लेकिन ज्वाला देवी इस मंदिर में कुछ अलग ही देखने को मिलता है।

ज्वाला देवी मंदिर का इतिहास (Jwala Devi Temple History in Hindi)

ज्वाला देवी मंदिर भारत में हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित है। देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक माँ ज्वाला देवी का यह प्राचीन मंदिर माता सती के शक्ति रूप को समर्पित है। यह विश्व का पहला ऐसा हिन्दू मंदिर है। जिसमे माता की कोई भी प्रतिमा विराजमान नहीं है। यानि की इस मंदिर में प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती है। माता के रूप में यहां पर सात प्रज्वलित ज्योतियां विराजमान हैं। श्रद्धालु इन ज्योतियों की ही पूजा करते हैं।

यहां पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं के मन में कई ऐसी बातें होती हैं। जैसे मंदिर में सिर्फ साथ ज्योतिया ही जलती रहती है। किसी भी प्रतिमा की पूजा नहीं होती है। और हैरान करने वाली बात तो यह है की यहां पर साक्षात चट्टान में जल रही ज्योतियां अपने आप ही जलती रहती हैं। इन ज्योतियो को कोई जलाता नहीं है। ये कैसे जल रही है। ये भी माता की एक पहेली है।  यह देखकर हर कोई हैरान हो जाता है।

ज्वाला देवी मंदिर की महिमा एवं मान्यता (Glory of Jwala Devi Temple in Hindi)

मंदिर के मुख्य पुजारी ने पुराणों के अनुसार हमे बताया कि इस स्थान पर माता सती की जीभा यानि जीभ गिरी थी। चौकाने वाली बात तो यह है की इस मंदिर के गर्भगृह में देवी की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है। बल्कि पहाड़ की चट्टान से सात ज्योतिया अनादिकाल से स्वयं जल रही है। कहते है की जब भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था। तो अकबर ने मां ज्वालादेवी की ज्योतियों को बुझाने के लिए नहर से लाकर इन पर पानी डलवाया था। और बाद में लोहे का तवा भी चढ़वाया। लेकिन माँ की जलती ज्योतियां ज्यों की त्यों रहीं। हिन्दुओं का विशेष पर्व जैसे नवरात्रो में यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

अकबर और ध्यानु से जुडी है जवाला देवी मंदिर की कहानी (Secrets of Jwala Devi Temple in Hindi)

पुराणों के अनुसार ज्वालामुखी देवी के बारे में एक और कथा काफी प्रचलित है उसके मुताबिक यह कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुड़ी है। यह घटना तबकी है जब भारत में सम्राट अकबर का शासन था। हिमाचल के नादौन गांव का रहने वाला धयानु माता का पराम् भक्त था। एक बार धयानु एक हजार यात्रियों साथ माता के दरबार जा रहा था। दिल्ली के चांदनी चौक पर यात्रियों की एक साथ इतनी भीड़ देख अकबर के सिपाहियों ने उन्हें रोक लिया और सीधे अकबर के दरबार ले गए।

अकबर ने जब धयानु से पूछा की तुम इतने सारे यात्री एक साथ कहा पर जा रहे हो। तो ध्यानु ने कहा बादशाह हम सभी यात्री माता ज्वालाजी के दर्शन करने के लिए जा रहा है। अकबर ने धयानु से कहा ये माता ज्वालाजी कौन है। और तुम्हे वहा जाकर क्या मिलेगा ?  ध्यानु ने बादशाह से कहा की ज्वालाजी माता पुरे संसार का पालन करने वाली माता है। माँ अपने सभी भक्तो की मुरादे पूरी करती है। ज्वालाजी माता की ज्योत बिना तेल के जलती रहती है। हम सब यात्री हर साल माता के दरबार में जाते है।

अकबर ने ध्यानु से कहा की अगर तुम सत्य बोल रहे हो तो ज्वालाजी माता तुम्हारी इज्जत जरूर रखेगी। अगर उसने तुम्हारी इज्जत नहीं रखी। तो तुम्हारी भक्ति बेकार है। में तुम्हारा इम्तहान लूंगा तुम इसमें पास होना होगा। में तुम्हारे घोड़े के सर को धड़ से अलग करा देता हु। तुम अपनी माता से बोलकर इस घोड़े को जिन्दा करवादो। तभी बादशाह ने घोड़े का सर धड़ से अलग करादिया। ध्यानु ने माता का दयँ करते हुए बादशाह से कहा आप एक महीने तक घोड़े के सिर और धड़ को सुरक्षित रखे। यह बात मानकर अकबर ने ध्यानु को यात्रा पर जाने की अनुमति देदी। Jwala Devi Temple Story

ज्वालाजी के दरबार में जाकर ध्यानु भक्त और अन्य यात्रियों ने स्नान आदि कर पूरी रात भर माता का जागरण किया।सुबह आरती करने के बाद माता से आराधना की हे माँ आप तो जगत जननी और अन्तर्यामी हो। बादशाह ने मुझसे मेरी भक्ति की परीक्षा मांगी है माँ मेरी लाज रखना मेरे घोड़े को आप जीवित कर देना। तभी माँ ने अपने भक्त की पुकार सुनली और घोड़े को जिन्दा कर दिया। यह देख बादशाह एकदम हैरान हो गया। और अपनी सेना के साथ मंदिर की और चल पड़ा।

मंदिर में पहुंचकर अकबर ने वहा जलती हुई ज्वाला देखि। और उन ज्वालाओं को भुजाने के लिए उसने अपनी सेना से पूरे मंदिर में पानी भरवा दिया। लेकिन माता की ज्वाला नहीं बुझी । तब जाकर अकबर को माँ की महिमा पर यकीं हुआ और उसने अपने मन से माँ को पचास किलो सोने का छतर भेट किया। लेकिन ज्वालीजी माता ने अकबर का वह छतर कबूल नहीं किया। वह छतर निचे गिर कर किसी दूसरे पदार्थ का बन गया । कहते है की आज भी अकबर का चढ़ाया हुआ छतर मंदिर में स्थापित है।

ज्वाला देवी मंदिर की पौराणिक कथा (Jwala Devi Temple Story in Hindi)

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। जिनका का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। एक बार दक्ष प्रजापति ने अपने निवास स्थान कनखल हरिद्वार में एक भव्य यज्ञ का आयोजन कराया। और इस भव्य यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को छोड़कर बाकि सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया। जब माता सती को पता चला की मेरे पिता ने इस भव्य यज्ञ मेरे पति को आमंत्रित नहीं किया। अपने पिता द्वारा पति का यह अपमान देख माता सती ने उसी यज्ञ में कूदकर अपने प्राणो की आहुति देदी थी।

यह सुचना सुनकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए तभी उन्होंने अपने अर्ध-देवता वीरभद्र को अन्य शिव गणों के साथ कनखल भेजा। वीरभद्र ने उस यज्ञ को नस्ट कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया। फिर सभी देवताओं के अनुरोध करने पर पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को दोबारा जीवन दान देकर उस पर बकरे का सिर लगा दिया। यह देख राजा दक्ष को अपनी गलतियों का पश्च्याताप हुआ और भगवान शिव से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी।

भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित होते हुए सती के मृत शरीर उठाकर पुरे ब्रह्माण के चक्कर लगाने लगे। तब पश्चात भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित करा था। जिस कारन से सती के जले हुए शरीर के हिस्से पृत्वी के अलग-अलग स्थानों पर जा गिरे। जहा-जहा पर सती के शरीर के भाग गिरे थे वे सभी स्थान “शक्तिपीठ” बन गए। जहा पर माँ ज्वाला देवी का मंदिर है इस स्थान पर माता सती जीभ गिरी थी। इसीलिए इस मंदिर की गणना 51 शक्तिपीठो में की जाती है। भक्त यहां पर आकर माँ ज्वालामुखी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है ।

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ज्वाला देवी मंदिर में कैसे पहुंचे (How to reach Jwala Devi Temple in Hindi)

ज्वाला देवी मंदिर में पहुंचने के लिए आपको हिमाचल प्रदेश आना होगा। जो की वायु मार्ग, सडक़ मार्ग और रेल मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

हवाई अड्डा (By Air) – वायु मार्ग से आप हिमाचल प्रदेश के गगल में स्थित कांगड़ा हवाई अड्डे पर आ सकते है। यहां से ज्वालाजी मंदिर 46 km की दूरी पर स्थित है। यहा से मंदिर तक जाने के लिए आपको टेक्सी और बस सुविधा आराम से मिल जाएगी है।

रेल मार्ग (ByTrain) – रेल मार्ग से आप पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से पालमपुर जा सकते है। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए आपको टेक्सी और बस सुविधा आराम से मिल जाएगी है।

सडक़ मार्ग (ByRoad) – अगर आप सड़क मार्ग से आ रहे है तो पठानकोट, दिल्ली, शिमला अन्य शहरो से ज्वालाजी मंदिर तक जाने के लिए टेक्सी और बस की सुविधा उपलब्ध है। जो यात्री अपने निजी वाहनो से जाना चाहते है वो भी वहा तक आराम से पहुंच सकते है। जो यात्री दिल्ली से आना चाहते है। तो दिल्ली से ज्वालाजी मंदिर तक जाने के लिए “दिल्ली परिवहन निगम” बस की सुविधा भी उपलब्ध है।

ज्वाला देवी मंदिर के कपाट खुलने एवं बंद होने समय (Opening and Closing timing of Jwala Devi Temple in Hindi)

पता – ज्वाला जी मंदिर रोड, ज्वालामुखी मुखी कांगड़ा – 176031, हिमाचल प्रदेश
शीतकालीन में मंदिर खुलने का समय – सुबह 7 बजे से 11 बजे तक और दोपहर 12:30 बजे से 09:30 बजे तक।
शीतकालीन में मंदिर बंद होने का समय – सुबह 11 से दोपहर 12:30 बजे तक।
ग्रीष्मकालीन में मंदिर खुलने का समय – सुबह 6 बजे से 11:30 बजे तक और दोपहर 12:30 से रात 10:00 बजे तक।
ग्रीष्मकालीन में मंदिर बंद होने का समय – सुबह 11:30 से दोपहर 12:30 बजे तक।
शीतकालीन में आरती का समय  –  सुबह 7 बजे और शाम 7 बजे तक।
ग्रीष्मकाल में आरती का समय – सुबह 6 बजे और रात्रि 8 बजे तक।

दोस्तों हम उम्मीद करते है कि आपको Jwala Devi Temple Story के बारे में पढ़कर अच्छा लगा होगा।

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अगर आप कनखल हरिद्वार में स्थित देवी सती के पिता राजा दक्षेस्वर महादेव मंदिर के बारे में पूरी जानकारी चाहते है तो नीचे दिए गए Link पर Click करे।

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