Samudra Manthan: हिन्दू धर्म की विष्णु पुराण, भागवत पुराण और महाभारत में समुद्र मंथन का उल्लेख किया हुआ है आज इस लेख के माध्यम से हम आपको समुद्र मंथन की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले वाले है साथ ही साथ रत्नो के बारे भी बताने वाले है आपसे निवेदन है की इस लेख को अंत तक जरूर पढ़े।

समुद्र मंथन का इतिहास (Samudra Manthan History in hindi)

इस कथा के अनुसार दुर्वासा ऋषि सतयुग, त्रेता और द्वापर इन तीनों युगों के एक प्रसिद्ध महान महर्षि थे। अपने अत्यधिक क्रोध के कारन किसी की छोटी सी गलती पर भी वो श्राप दे देते थे। लेकिन भगवान शिव के परम भक्त होने के कारन उनकी भक्ति में लीन रहते थे। एक बार भगवान शिव के दर्शन करने के लिए दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ कैलाश पर्वत पर जा रहे थे। तभी रास्ते में उन्हें देवराज इन्द्र मिले।

इन्द्रदेव ने दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। यह देख दुर्वासा ऋषि ने इन्द्रदेव को आशीर्वाद देकर विष्णु भगवान का एक दिव्य पुष्प प्रदान किया। लेकिन अपने घमंड में चूर इन्द्रदेव ने उस पुष्प को अपने ऐरावत हाथी के मस्तक पर रख दिया। जैसे ही पुष्प ऐरावत हाथी के मस्तक पर स्पर्श हुआ तो हाथी एक दम सहसा हुआ तेजस्वी हो गया। और उस दिव्य पुष्प को कुचलते हुए वन की ओर चला गया।

इन्द्रदेव के द्वारा भगवान विष्णु के पुष्प का अपमान देख दुर्वाषा ऋषि अत्यधिक क्रोध में आ गये। और उन्होंने इन्द्रदेव को लक्ष्मी से हीन हो जाने का श्राप दे दिया। दुर्वाषा के श्राप देने के कारन से लक्ष्मी उसी समय इंद्रदेव के स्वर्गलोक को छोड़कर अदृश्य हो जाती है। यह देख इन्द्रदेव और अन्य देवता अपनी शक्ति से कमजोर और श्रीहीन हो जाते है। उनका वैभव भी लुप्त हो जाता है। इन्द्रदेव  को शक्तिहीन देख राक्षशो ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। और स्वर्ग के सभी देवगणो को पराजित कर उन्हें वहा से बहार कर दिया।

तब इन्द्रदेव अन्य देवताओं के साथ ब्रह्माजी की शरण में गए। और बोले हे प्रभु हमारी रक्षा करो । ब्रह्माजी बोले की हे इंद्रदेव तुमने भगवान विष्णु के दिव्य पुष्प का अपमान किया। इसीलिए लक्ष्मी तुम्हारे पास से चली गयी। लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए और अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त करने के लिए अब तुम्हे भगवान विष्णु की शरण में जाना होगा।

तब ब्रह्माजी, इन्द्रदेव और अन्य देवताओं को लेकर भगवान विष्णु की शरण में पहुँचे। वहाँ पर भगवान विष्णु अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ विराजमान थे। ब्रह्माजी और सभी देवगणो ने भगवान विष्णु के चरणों में बारम्बार प्रणाम किया। और बोले हे प्रभु हमारी रक्षा करो। दुर्वाषा ऋषि के श्राप से माता लक्ष्मी हमारे स्वर्ग से रूठ कर चली गयी। और असुरो ने हमें पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। अब आप ही हमे कोई मार्ग दिखाए प्रभु ।

समुद्र मंथन करने के लिए किसने कहा (Samudra Manthan Story in Hindi)

भगवान विष्णु देवताओं की यह बात जानकर देवगणो से बोले की इस समय तुम्हारे ऊपर असुरो का संकट काल है। इसका केवल एक ही उपाय है। तुम सब देवगन मिलकर उन असुरो के साथ मित्रता कर उनकी सभी बात मान लो। और क्षीर सागर के गर्भ में कई दिव्य पदार्थों के साथ अमृत भी छिपा हुआ है। उस अमृत को पिने से तुम मृत्यु को पराजित कर हमेशा के लिए अमर हो जाओगे। और तुम्हारे अंदर असुरो को मारने का सामर्थ्य भी आ जायेगा। लेकिन इसके लिए तुम्हें समुद्र मंथन करना होगा। परन्तु इसके लिए तुम्हे असुरो से मित्रता कर उन्हें समुद्र मंथन (Samudra Manthan) के लिए तैयार करना होगा। भगवान विष्णु के परामर्श के अनुसार इंद्रदेव अन्य देवताओं के साथ दैत्यराज बलि के पास पहुंचे और उन्हें अमृत के बारे में बताकर समुद्र मंथन के लिए तैयार कर लिया।

समुद्र मंथन किसकी सहायता से हुआ

समुद्र मंथन आरम्भ करने के लिए मन्दराचल पर्वत और वासुकि नाग इन दोनों की सहायता ली गयी थी। जिसमे मन्दराचल पर्वत को मथनी और वासुकि नाग का रस्सी की तरह प्रयोग किया गया। वासुकी नाग के नेत्रो से आंसू देख भगवान विष्णु ने तभी एक कछुए रूप धारण किया और मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रखकर उसे समुद्र में डूबने से बचाया। वासुकी नाग को देवता उसके मुख की ओर से पकड़ने लगे। तभी दानव असुरो ने सोचा कि वासुकी नाग को मुख की तरफ से पकड़ने में कुछ न कुछ लाभ जरूर होगा। यह सोचकर उन्होंने देवगणो से कहा हम नाग के मुख की तरफ होंगे और तुम सब देवगन नाग की पूछ की और स्थान लेंगे। जब समुद्र मंथन आरम्भ हुआ तभी वासुकि बाग़ की सहायता से कछुए के ऊपर रखा मन्दराचल पर्वत घूमने लगा। इस प्रकार समुद्र मंथन में से 14 रत्नो की उत्पत्ति हुई थी जो इस प्रकार है।

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समुद्र मंथन से निकले 14 रत्न (Samudra Manthan 14 Ratnas Story in Hindi)

1. हलाहल विष

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से पहले कर्म में एक कालकूट नाम का हलाहल विष निकला था। उस विष के प्रभाव से सभी देवगण और दानव शक्ति हीन होने लगे थे। यह देख सभी देवगण और असुरो ने मिलकर भगवान शिव की आराधना की। और बोले हे महादेव इस हलाहल विष के प्रभाव से हमे बचाओ, अब आप ही हमारी और इस संसार की श्रष्टि की रक्षा कर सकते है। तभी भगवान शिव ने उस विष के कलश को अपनी कंठ में धारण कर लिया। जिससे की उनका कंठ नीला पद गया। इसीलिये उन्हें नीलकंठ महादेव कहते हैं।

हलाहल विष तात्पर्य है कि सबसे पहले हमे अपने मन में से बुरे विचारो को बाहर निकालकर भगवान को समर्पित कर देना चाहिए।  और इन बुरे विचारो से मुक्त हो जाना चाहिए। कियुँकि हमारे जीवन में ये बुरे विचार ही सबसे खरनाक विष है।

2. कामधेनु

समुद्र मंथन में से दूसरे क्रम में एक कामधेनु निकली। “कामधेनु” का अर्थ होता है काम मतलब इच्छा धेनु मतलब गाय। अर्थात हिन्दू धर्म में गाय को एक देवी का रूप दिया गया है। इसलिए ऋषियों मुनियो ने उन्हें गाय माता के रूप में अपने पास रख लिया। और ऋषियों ने यह सीख दी। कि मनुस्य को अपनी मेहनत से कमाई गयी धन-दौलत का पहला हिस्सा किसी की भी भलाई में जरूर देना चाहिए  कामधेनु प्रतीक है साफ़ मन का। क्योंकि जीवन से विष निकल जाने के बाद मन साफ़ और निर्मल हो जाता है।

3. उच्चैश्रवा घोड़ा

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से तीसरे क्रम में एक सफ़ेद रंग का साथ मुख वाला उच्चैश्रवा घोड़ा निकला। जो की इंद्रदेव को प्राप्त हुआ था।

उच्चै:श्रवा का अर्थ होता है कीर्ति यानी जो मनुष्य मन को स्थिर रखकर मान व पैसा भी कमाता हो। केवल कीर्ति के ही पीछे न भागे।

4. ऐरावत हाथी

समुद्र मंथन में से चौथे क्रम में एक ऐरावत हाथी निकला था। चार दाँत वाले उस हाथी महिमा एकदम अद्भुत थी। जब रत्नों का बटवारा हो रहा था तो ऐरावत हाथी इंद्रदेव को सोपा गया था। उस ऐरावत हाथी को अपनी सवारी बनाकर इंद्रदेव, इंद्रहस्ति और इंद्रकुंजर के नाम से जाने जाते थे।

5. कौस्तुभ मणि

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से पाचवे क्रम में एक कौस्तुभ मणि निकली थी। प्रेम और भक्ति का प्रतिक कही जाने वाली इस मणि को स्वयं भगवान विष्णु ने अपने ह्रदय में धारण किया था। क्यूंकि जब मनुष्य अपने मन को साफ़ रखता है तो प्रेम और भक्ति स्वयं आ जाते है।

6. कल्पवृक्ष

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से छठे क्रम में एक कल्पवृक्ष निकला था। देवलोक के समय का यह भव्य कल्पवृक्ष अन्य नाम जैसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु देवतरु के  नामों से भी जाना जाता है। यह भी इंद्रदेव को दिया गया था। हिन्दू धर्म के पुरम में कहते है कि कल्पवृक्ष से जिस वस्तु की भी प्राथना की जाए वही मिल जाती है। इस्लामी धर्म में इसका वर्णन ‘तूबा’ नाम से किया हुआ है। जो हमेशा फूलता फलता रहता है।

7. रंभा अप्सरा

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से सातवे क्रम में एक रंभा नाम की सुंदर अप्सरा निकली थी। जिसको इंद्रदेव ने अपनी राजसभा के लिए रखा था।  एक बार रंभा को ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा गया था। तभी ऋषि ने उसे एक पाषाण के रूप में रहने का श्राप दे दिया था। एक बार कुबेर पुत्र के यहाँ जाते हुए रंभा को रावण मिले जो कैलाश की तरफ जा रहे थे। रावण को बहुत प्यास लगी थी। तो रंभा ने रावण को एक कुएं का पता बताया। रंभा से प्रसन्न होकर रावण ने उसे माणि से ज्यादा हुआ सवर्ण का हार दिया था।

8. महालक्ष्मी

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से आठवे क्रम में हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी माँ लक्ष्मी निकली थी। जो विष्णु भगवान की पत्नी थी। त्रिदेवियाँ में से एक माँ लक्ष्मी धन और सम्पदा की देवी मानी जाती हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार दीपावली के त्योहार में  भगवान गणेश के साथ माँ लक्ष्मी की पूजा रचना की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार कहते है की को लक्ष्मी को मनाने के लिए सभी जतन करने लगे। लेकिन लक्ष्मी ऋषियों के पास गयी। कहते है की जिनका मन साफ और सरल होता है माँ लक्ष्मी उन पर जल्दी प्रसन्न होती है।

9. वारुणी देवी

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से नौवे क्रम में वारुणी नाम की एक देवी निकली थी। वारुणी शब्द का अर्थ होता है मदिरा यानी नशा करने वाला प्रदात जो की शरीर के लिए हानिकारक होता है। इसीलिए इस देवी को मदिरा देवी भी कहते है। इस वारुणी देवी को दानव असुरो ने लिए था। क्यूंकि मनुष्य अगर भगवान की भक्ति चाहता है तो मदिरा से दूर ही रहना होगा।

10. चन्द्रमा

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से दसवे क्रम में चन्द्रमा यानि चंद्रदेव निकले थे। जो की पृथ्वी के एकमात्र और सौर मंडल के पाचवाँ प्राकृतिक उपग्रह माने गए। चन्द्रमा को शीतलता का प्रतिक माना गया। इसीलिए भगवान शिव ने चन्द्रमा को अपनी मस्तक पर धारण किया था। कहते है की मनुष्य का मन अगर बुरे, लालच, नशा, वासना, से मुक्त होकर साफ़ हो जाये वह मनुष्य चंद्रमा की तरह शीतल हो जाता है।

11. पारिजात वृक्ष

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से ग्यारहवे क्रम में एक दिव्य पारिजात वृक्ष निकला था। इस पुष्प देने वाले वृक्ष की यह खासियत है की इसे छूने से सारी थकान एकदम मिट जाती है। ऐसी मान्यता है कि स्वर्ग की नृत्य करने वाली अप्सराएं भी इस वृक्ष को छूकर अपनी थकान मिटाती थीं। पुराणों के अनुसार इस वृक्ष के निचे हनुमानजी ने भी वास किया था और कहते है। की भगवान कृष्ण स्वयं स्वर्ग जाकर पारिजात वृक्ष लाये थे।

12. शारंग धनुष

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से बारवे क्रम में भगवान विष्णु का एक दिव्य शारंग धनुष निकला था। भगवान विष्णु के अन्य और भी अस्त्र है। जैसे सुदर्शन चक्र, नारायणास्त्र, और नंदक आदि।

13. शंख

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से तेरहवे क्रम में एक शंख निकला था। समुद्र के जलचर से बने हुए इस ढांचे को हिन्दु धर्म में पवित्र और प्रतिक माना गया है। मुख्य रूप से शंख दो प्रकार के होते है एक वामावर्ती शंख दूसरा दक्षिणावर्त शंख। पुराणों ऐसा उल्लेख है की घर में शंख बजाने से लक्ष्मी का वास होता है। भगवान विष्णु के दांए हाथ में भी शंख है।

14. धनवन्तरि और अमृत

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) में से चौदवे क्रम में भगवान विष्णु के ही अंश धनवन्तरि अपने हाथो में अमृत कलश लेकर निकले थे। अमृत का अर्थ ‘अमरता’ होता है। यानी अमरत्व का रस जिसको पिने से अमरता मिलती है। धन्वंतरि महाराज तन मन और धर्म का प्रतीक हैं। ये तीनो साफ़ होंगे तभी आपको परमात्मा की प्राप्ति होगी। समुद्र मंथन में अमृत का 14 अंक का स्थान था। यानि 5 कमेंद्रियां, 5 जननेन्द्रियां और 4 जिनमे – मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार।

जैसे ही धन्वन्तरि महाराज के हाथो में अमृत का कलश देखा तो दानव असुरो उस कलश को ने छीन लिया। और आपस में ही लड़ने लगे। दुर्वासा ऋषि के श्राप से देवताओं में इतनी शक्ति नहीं थी कि वे अमृत का कलश दानवो से लेले।

भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार (Mohini Avatar of Lord Vishnu in Hindi)

भगवान विष्णु ने देवताओं को निरसा देख एक अति सुंदर मोहिनी का रूप धारण किया और असुरो के पास जा पहुँचे। उस विश्वमोहिनी के सुंदर रूप को देखकर दानव असुर और देवगण प्रेम भावो में खो गए। यही नहीं स्वयं भगवान शिव भी मोहिनी की तरफ बार-बार देखने लगे। दानव असुरो ने मोहिनी को अपनी तरफ आती देख, अपना सारा झगड़ा भूल जाते है। और मोहिनी की तरफ आकर्षित हो जाते है।

दानव बोले की हे सुंदरी तुम कौन हो कहा से आयी हो ऐसा लगता है। जैसे तुम ही हमे अपने कोमल हाथो से अमृत पिलाओगी। आयो सुंदरी तुम्हारा स्वागत है जल्दी आयो, मोहिनी देवताओं और दानवो से बोली आप आपस में इतना क्यों लड़ते हो। मैं तो एक साधारण स्त्री हूँ। तुम सब बुद्धिमान हो, मेरे ऊपर विश्वास मत करो। और मिल बटकर स्वयं अमृत पान करलो। यह बात सुनकर दानवों को सुंदरी पर और विशवास हो गया ।और बोले हे सुंदरी हमे तुम पर पूर्ण विशवास है। तुम जेसे भी बाँटोगी हम अमृत पान कर लेंगे। मोहिनी ने अमृत कलश को हाथो में लेकर देवताओं और दानवो को अलग-अलग स्थानों पर बैठने के लिए कहा। और अपनी और सभी दानवो को ऐसे मदहोश कर दिए की वह अमृत पीना ही भूल गये।

राहु और केतु (Rahu and Ketu)

विष्णु भगवान के इस खेल को राहु नाम का दानव समझ गया। और उसने देवता का रूप धारण कर अन्य देवताओं के साथ बैठकर अमृत पान कर लिया। जैसे ही अमृत राहु के कंठ तक पंहुचा तो चंद्रदेव और सूर्यदेव बोले की ये दानव है देवता नहीं। तभी भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस दानव का सर धड़ से अलग कर दिया। अमृत पान के प्रभाव से दानव के सर और धड़ से दो ग्रह बन गए जिसको राहु और केतु नाम से जाना जाता है। इन्ही के भाव के कारण सूर्यदेव और चन्द्रदेव को ग्रहण लगते हैं। इस तरह भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पान कराया। और इन्द्रदेव ने सभी दानव असुरो को परास्त कर अपना इन्द्रलोक वापस ले लिया।

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